About Salasar Balaji Temple Story In Hindi
नागौर जिले की लाडनूं तहसील के गांव आसोटा का एक किसान अपने खेत में बुआई कर रहा था। तभी हल के अग्रभाग से शिलामयी मूर्ति निकली। किसान ने अज्ञानवश उसे इधर-उधर रख दिया। बाद में किसान को पेट दर्द होने लगा। इसी समय उसकी पत्नी दोपहर का भोजन लेकर आ गई और पति के पेट में दर्द की बात सुनकर मन ही मन दुखी हुई। पास ही काले पत्थर की शिला को देखा तो उसे अपने आंचल से साफ किया तो उसे मूर्ति के दर्शन हुए। उसे उसने खेजड़ी के वृक्ष के नीचे विराजमान कर दिया।
चमत्कार यह हुआ कि पति का पेट ठीक हो गया। लाडनूं के तत्कालीन राजपरिवार के मुखिया को स्वप्न में इसकी जानकारी मिली। सुबह पता लगाया तो बात सच पाई गई। इस पर उसे अपने महल में ले जाकर विराजित कर दिया। उधर सालासर में भक्त मोहनदासजी को भी इसी प्रकार का दर्शन होकर आवाज हुई कि मैं आ रहा हूं। फिर सालासर के लिए बैलगाड़ी में मूर्ति को विराजमान कर रवाना कर दिया गया।
रास्ते में पाबोलाव के पास भक्त और भगवान का मिलन हुआ तथा यहां से मूर्ति सालासर पहुंची। मूर्ति स्थापना के लिए स्थान आदि के बारे में सोचा गया, तब मोहनदासजी ने कहा कि जहां बैलगाड़ी रुके वहीं स्थापित कर दी जाए। बैलगाड़ी धोरे पर जाकर एक खेजड़ी के पास रूकी, वहीं पर संवत 1811 श्रावण मास शुक्ल पक्ष की नवमी को बालाजी की मूर्ति स्थापित हुई।
शुद्धता का प्रतीक है बालाजी का रसोड़ा
आधुनिकता के इस दौर में बालाजी मंदिर में चलने वाला रसोड़ा आज भी शुद्धता का प्रतीक है। बाबा के लिए चूरमा व लड्डू का भोग आज भी गैस चूल्हे की बजाय लकड़ी के चूल्हे पर ही तैयार किया जाता है। इसके अलावा रसोड़े में सवामणी के लिए चूरमे का प्रसाद तैयार किया जाता है। जो श्रद्धालुओं को उचित दर पर मुहैया करवाया जाता है। दिनभर चलने वाले रसोड़े में सैकड़ों कर्मचारी काम कर रहे हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भी यहां बाबा का प्रसाद लेते हैं।
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